मुश्किल यह है कि गाँव में पुराने खयाल का जो आम चेहरा है, उसका स्वभाव है कि भीतर गरीबी की आग जल रही हो तब भी ऊपर से हँसता रहेगा| किंतु नए जमान का नया चेहरा है कि सुख-सुविधा और नए धन की खुशहाली भीतर छिपाकर बाहर से रोता फिरेगा-‘सरकार यह नहीं करती, वह नहीं करती| हम तो मर गए, उजड़ गए|’ • एक ओर हिंदुस्तान में गगनानंद और उनके महागुरु शून्यानंद जैसे धर्म गुरुओं और स्वयंभू भगवानों के पीछे विराट् पूँजी लगी है| नाना प्रकार की चकाचौंध और उच्चाटन के सहारे ये लोग बुद्धिजीवियों को भरमाने में लगे हैं| दूसरी ओर विज्ञान के द्वारा ईश्वर को धकियाकर व आधुनिक जीवन के मुहावरों को विचारों में ढालकर वैज्ञानिक पद्धति से नपुंसक बनाने का कारोबार चलने लगा है| • सुराज उन बाधाओं को हटाना चाहता है, जो उसे अपनी जनता से नहीं मिलने देतीं| वह हुमाच भर-भरकर अपनी अनन्दायिनी ग्राम्य देवी के पास जाना चाहता है; लेकिन क्या स्टेशन से आगे कहीं बढ़ पाता है? यह निराश होकर लौट आता है| कुछ दिन बाद फिर आशा जगती है शायद अब सड़क बन गई हो| मगर अफसोस! सपना सपना रह जाता है| बिना सड़क के जनता तक जाने का सवाल ही नहीं|...क्या जनता ही अब हिम्मत कर सुराज तक पहुँचेगी? • बकबक बोलूँगा तो क्रांति कैसे होगी?...भाषण, अखबार, रेडियो, दूरदर्शन, प्रचार, पार्टी, प्रस्ताव, तंत्र और नाना प्रकार की आधुनिक समझदारियों ने देश को नरक बना दिया है| नरक अवांछित है, मगर हम ढो रहे हैं| यह असह्य है, पर हम सह रहे हैं|...गुरुदेव! आप क्या सोच रहे हैं? -इसी उपन्यास से
Samar Shesh Hai (समर शेष हैं)
Author: Viveki Rai (विवेकी राय)
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500.00
Condition: New
Isbn: 9788173159121
Publisher: Prabhat Prakashan
Binding: Hardcover
Language: Hindi
Genre: Novels And Short Stories,
Publishing Date / Year: 2012
No of Pages: 524
Weight: 630 Gram
Total Price: ₹ 500.00
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