Namami Gramam (नमामि ग्रामम)

By Viveki Rai (विवेकी राय)

Namami Gramam (नमामि ग्रामम)

By Viveki Rai (विवेकी राय)

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Specifications

Genre

Novels And Short Stories

Print Length

272 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2011

ISBN

818582861X

Weight

290 Gram

Description

आप विश्‍वास करें चाहे नहीं, परंतु यह एक यथार्थ है कि ' गाँव ' से नित्य मेरी मुलाकात होती है | वह जीर्ण -शीर्ण वस्त्रों में, नंगे पाँव, बाल बढ़े हुए और अति घिसा- पिटा, आहत, झुका-झुका अपना शरीर लिये एक बूढ़े के रूप में मेरे सामने आता है | गाँव के बारे में मेरी जानकारी को निर्दयतापूर्वक काटता है और पिछड़े हुए अतिहीन, औसत अंतिम ग्रामांचलों की वकालत करता है | आज तो विचित्र बात हुई | वह मुझसे पहले वहाँ पहुँच गया था | मैंने देखा, खड़ा- खड़ा बड़बड़ा रहा है- ' नहीं, गाँव के नहीं, वे अपने चक्कर में हैं | ऐसा नहीं होता तो गाँवों में इतने-इतने तरह के मगरमच्छों को क्यों खुला छोड़ देते?. .सारी योजनाएँ इन्हींके पेट में, पंचायत राज विधेयक इन्हींके पेट में, जवाहर रोजगार योजना इन्हींके पेट में, एकीकृत योजना इन्हींके पेट में, निर्बल वर्ग से संबंधित सारी योजना का सार- तत्त्व इन्हींके पेट में! बाकी लोग छिलके बटोर संतोष करें.. .लेखक आता है तो कहता हूँ | लेकिन आता क्या है, वह तो मेरे पीछे खड़ा है | आगे आने की हिम्मत नहीं है?' उसने घूमकर कहा | मैंने कहा, ' हिम्मत तो खूब थी; परंतु अब हिम्मत टूट रही है | आप गाँव हो कि एकदम अबूझ होते जा रहे हो!.. .वह मगरमच्छों की क्या शिकायत चल रही थी?' ' शिकायत कि वह एक असलियत थी | बैठो तो मन की पीड़ा कहूँ | ' इसके बाद बूढ़ा दहकने लगा और मैं फिर एक समर्पित श्रोता बन गया | - इसी उपन्यास से स्वर्ग बनाने के स्वप्‍न दिखाकर आज की राज्य-व्यवस्था ने गाँव को साक्षात् नरक बना छोड़ा है | देश के कर्णधार गाँव के विकास की बातें करते नहीं थकते; परंतु गाँवों की वास्तविकता क्या है? यही गाँव की कहानी, गाँव की जबानी प्रस्तुत की है इस उपन्यास में डॉ. विवेकी राय ने | यह अपने आप में नितांत अनूठी रचना है |


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