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Kitne Janam Vaidehi (कितने जनम वैदेही)

Price: ₹ 300.00

Condition: New

Isbn: 8173151237

Publisher: Prabhat Prakashan

Binding: Hardcover

Language: Hindi

Genre: Novels And Short Stories,

Publishing Date / Year: 2011

No of Pages: 250

Weight: 420 Gram

Total Price: 300.00

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कैसा वर खोज रही हैं आजी, अपने रामचंद्रजी की तरह. .जीवित जानकी को आग की लपटों में बिठानेवाले, वानर- भालुओं के साथ मिलकर एक सती के सतीत्व का परीक्षण-पर्व निहारनेवाले..? मुझे तुम्हारे राम से एक बड़ी शिकायत है.. .पुरुषार्थ की कमी तो नहीं थी उनमें. .फिर क्यों नहीं सारे संसार को प्रत्यक्ष चुनौती दे सके- मैं राम अपनी प्रलंब भुजा उठाकर घोषणा करता हूँ-सीता के अस्तित्व पर, उनकी दृढ़ इच्छाशक्‍त‌ि पर मेरी उतनी ही निष्‍ठा है जितनी अपने आप पर..! फिर किसी अनलदहन का औचित्य किसलिए? जानकी जैसी हैं.. .जिस रूप में हैं, मैर लिए पूर्ववत् वरेण्या हैं... नहीं आजी, राम के अन्याय को भक्‍त‌ि, ज्ञान और अध्यात्म के तर्क से तुम उचित भले करार दो; लेकिन मेरा मन नहीं मानता.. | जागेश्‍‍वरी आजी का संशय नंदिनी के सोच की प्रखरता में साकार हो चुका था | नंदिनी, उनकी तीसरी पीढ़ी.. भोजपुर का नया तिरिया-जनम.. उनका मन हुआ था-बुद्धि को चिंतन की शास्ति देनेवाले अपने उस नए जनम से पूछें-अच्छा, बोल तो नंदू तुझे रामकथा लिखने का हक हमने दे दिया तो तू क्या लिखेगी.. अपने अक्षरों का तप कहाँ से शुरू करेगी..? -इसी उपन्यास से क्या आज की हर सीता का प्रारंभ भी वनवास और अंत अनलदहन से नहीं हो रहा ? यदि नंदिनी भी अपनी कथा सीता वनवास से ही प्रारंभ करे तो क्या वह आज की हर नारी का सच नहीं होगा? आधुनिक भारतीय समजि, मानव जीवन, विशेष रूप से स्त्री जीवन, को आधार बनाकर लिखा गया यह उपन्यास अपने समय की श्रेष्‍ठतम कृति है |