By Ashok Drolia (अशोक ड्रोलिया), Rajani Drolia (रजनी ड्रोलिया)
By Ashok Drolia (अशोक ड्रोलिया), Rajani Drolia (रजनी ड्रोलिया)
₹175.00
MRPGenre
Novels And Short Stories
Print Length
135 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2014
ISBN
9788177212341
Weight
300 Gram
संगम साहित्य के रूप में संगृहीत गीत और ‘मणिमेहलै’ तथा ‘शिलप्पडिहारम्’ रचनाएँ भारतीय समाज और संस्कृति की मूल प्रवृत्तियों के बहुत निकट हैं| इनमें जीवन का जो चित्र उमड़ता है, उसे हृदयंगम किए बिना दक्षिण भारत ही नहीं, संपूर्ण भारत के इतिहास और सांस्कृतिक विकास को ठीक-ठीक समझ पाना कठिन है| दूसरी बात यह है कि इन काव्यों में तत्कालीन जीवन का जो चित्रण हुआ है, वह अपने आप में इतना पूर्ण है कि उसमें बहुत परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है| हिंदी में यह सामग्री अब भी विरल रूप से ही उपलब्ध है| अंग्रेजी में इसके कुछ अच्छे अनुवाद हुए हैं, परंतु वे हिंदी पाठकों के लिए दुरूह हैं और दुर्लभ भी| अतः इस कथा के रूप में इनका परिचय कराकर हिंदी पाठकों को इस अमूल्य निधि की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है| प्रस्तुत है यह कथा, उन्हीं की, लोक-प्रभव, शुभ, सकल सिद्धिकर| विघ्नेश्वर तो सरल हृदय हैं, योगक्षेम के उन्नायक हैं, बस थोड़ा सम्मान चाहिए, प्रेमपूर्ण व्यवहार चाहिए, मार्ग हमारा सुकर करें वे, उनसे यह वरदान चाहिए|
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