₹350.00
MRPGenre
Other
Print Length
272 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2010
ISBN
9789380186283
Weight
435 Gram
बिहार लोकतंत्र का तीर्थ कहा जाता है| बिहार के लोकतंत्र में जाति है, रंगदारी है, छल-कपट है और बूथ की लूट भी! लोकतांत्रिक राजनीति के छह दशक बाद भी बिहार में बेहद गरीबी है, बदहाली है, सार्वजनिक जीवन की न्यूनतम सुविधाओं का घोर अभाव है| यह पुस्तक हमारी भेंट बिहार में लोकतांत्रिक राजनीति के उस चेहरे से करवाती है, जो भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक राजनीति का सबसे पेचीदा सवाल है| बिहार में सुशासन तभी कारगर व प्रभावी होगा, जब भूमि सुधार, समान शिक्षा विधेयक, किसान आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाएगा| एक सुखद पहलू है कि आज बिहार में तथा बिहार से बाहर रहने वाले प्रत्येक बिहारी के मन में साहस और गर्व की अनुभूति है| लगभग 85-90 प्रतिशत लोगों ने यह माना है कि नीतीश कुमार के शासनकाल में सड़कें बनी हैं, कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधरी है|
पुस्तक में शामिल आम लोगों की चिट्ठियाँ बिहार में सुशासन का प्रमाण हैं| समाज के अलग-अलग तबकों, खासतौर से बहिष्कृत समाज की आवाज को शामिल करना इस पुस्तक की एक विशिष्ट उपलब्धि है|
0
out of 5