₹200.00
MRPGenre
Novels And Short Stories
Print Length
178 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2009
ISBN
818826735X
Weight
285 Gram
“ददा से भेंट करे बर गए रहै का, दाई?” “हाहो|” “भेंट होए रहिसे?” “ना, टाइम नहीं रहिसे, कल आए बर बोले हे|” “दाई, शिवराम कका आए रहै|” “अच्छा, क्या कहता रहा?” “कहता रहा, कोरट से जमानत कराना हो तो जमानतदार लाना होगा, वकील करना होगा|” “हाँ, ये तो है|” लक्षन ने एक आह भरी थी, “घर मा मनखे जात के रहे ले घर के मरजादा तोपाय रहिथय, मनखे बिगर सबके डौकी जात के कोनों पूछ नई होवय|” दिन भर थाने, जेल, सुनार सबके पास से दुरदुराए जाने की पीड़ा लक्षन के स्वर में उभर आई थी| “दाई, का राँधवो?” मनबोधनी उसके सिरहाने चिंतित खड़ी थी| “कुछ कानी राँध ले|” लक्षन दिन भर के परिश्रम व थकान के कारण नीम बेहोश-सी हो चली थी| ताप की कमजोरी तो थी ही देह में| “हाहो|” -इसी उपन्यास से हमारे देश में सभ्य और संभ्रांत समाज से इतर एक ऐसा समाज भी है, जो झोंपड़-पट्टी में रहकर दुनिया के तमाम दु:ख भोगता है| इसे उसकी नियति कहें या विडंबना अथवा क्या? प्रस्तुत उपन्यास में ऐसे ही समाज के रहन-सहन, आचार-विचार, रीति-रिवाज, शादी-विवाह आदि का बड़ी खोजपरक दृष्टि से विशद वर्णन पाठकों के सामने प्रस्तुत किया गया है| यह उपन्यास मनोरंजन के साथ-साथ पाठकों को बहुत कुछ सोचने के लिए भी विवश करता है|
0
out of 5