₹250.00
MRPGenre
Novels And Short Stories
Print Length
184 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2012
ISBN
9789380183909
Weight
270 Gram
सूरज का यह दूसरा संग्रह है| पहले संग्रह ‘धुआं-धुआं सूरज’ में सूरज की शेरों-शायरी के बहुत से रंग देखने को मिले| ‘सूरज’ दरअसल कबीर की परंपरा के वाहक हैं, वे कागद लेखी की बजाय आंखन देखी पर ज्यादा यकीन करते हैं| सूरज बेबाक हैं, अपनी बात साफगोई से कहना उनका स्वभाव है|
‘मैं, तुम्हारा चेहरा’ रुबाइयों में इनसान की जिंदगी के दर्द के रिश्तों के एहसास के अलग-अलग चेहरे हैं, नजरिए हैं, बस और कुछ नहीं| इनमें सूरज ने हमारी, हम सबकी बात की है, जो कहीं-न-कहीं व्यवस्तताओं की भीड़ में हमसे नजरअंदाज हो जाती हैं| सूरज ने चार-चार पंक्तियों में जिंदगी के सभी रंग करीने से पिरोए हैं| दोस्ती-दुश्मनी, रंजोगम, दौलत, शोहरत, दुनियादारी जैसे सवालात और भावों को इस संग्रह में अभिव्यक्ति मिली है, जो मन में गहरे तक उतर जाती हैं, जैसे- ‘‘सांस-सांस चाक हो गई आरजुएं खाक हो गईं| बस, खुदी को मुंह लगा लिया जिंदगी मजाक हो गई|’’
‘सूरज’ कवि सम्मेलन और मुशायरे दोनों के मंच से अपनी शायरी, मुक्तक, रुबाइयां पढ़ते हैं, उनका सुर बहुत सुरीला है|
मंच पर वे बहुत लोकप्रिय हैं| ‘सूरज’ एक रंगकर्मी भी हैं| हम अकसर उन्हें या तो कवि-शायरों के मंच पर पाते हैं या फिर किसी नाटक में अभिनय करते| जबलपुरिया होने के कारण उनकी जीवनशैली, लेखनशैली सभी कुछ यारबाजी, दिलेरी से भरी हुई है| सूरज दरअसल हमारे समय का इतिहास लेखन कर रहे हैं, जो उनकी अपनी शैली में है|
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