₹200.00
MRPGenre
Novels And Short Stories
Print Length
95 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2012
ISBN
9789350481455
Weight
270 Gram
प्रस्तुत कविता-संग्रह 'बस यही स्वप्न, बस यही लगन’ श्री जय शंकर मिश्र की काव्य-यात्रा का पंचम सोपान है| इससे पूर्व की रचनाएँ 'यह धूप-छाँव, यह आकर्षण’ , 'हो हिमालय नया, अब हो गंगा नई’ , 'चाँद सिरहाने रख’ तथा 'बाँह खोलो, उड़ो मुक्त आकाश में’ साहित्य- जगत् में अत्यधिक रुचि, उल्लास एवं संभावना के साथ स्वीकार की गई हैं| अपनी सहजता, सरलता एवं आह्लदमय संदेश के साथ-साथ इन रचनाओं में अंतर्निहित युग-मंगल की कामना, जीवन को सौंदर्यमय एवं शिवमय बनाने की भावना रचनाकार को एक विशिष्ïट पहचान देती है| इस संग्रह की रचनाएँ विविध स्वप्न, अनुभव, आशा-निराशा, स्नेह-प्रीति, प्रणय व जन-जन के उन्नयन की आशा, आकांक्षा एवं प्रयास पर आधारित भावनाओं का सशक्त प्रतिनिधित्व करती हैं| इस काव्य संग्रह में आशा-विश्वास का प्रीतिकर स्वर व्याप्त है| इन रचनाओं में प्रकृति चित्रों के माध्यम से जीवन के उल्लास, प्रेम, सौंदर्य एवं शिवं-सुंदरम की अत्यंत मनोरम अभिव्यक्ति हुई है| कवि जीवन-सौंदर्य में निर्बाध बहना चाहता है| इन रचनाओं में मानवीय चिंतन, जिजीविषा, सौंदर्य के प्रति पावन भाव आदि के जो स्वर गुंजित हुए हैं, वे आज की व्यवस्था में सर्वाधिक वांछनीय हैं; परंतु इन दिनों काव्य रचनाओं में कम ही दिखाई देते हैं| अनुभूति की सघनता एवं यथार्थ के संश्लेष से सृजित रचनाओं की विविधता, सरलता एवं सहजता कवि की असीम संभावनाओं की भावभूमि है|
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