₹200.00
MRPGenre
Novels And Short Stories
Print Length
160 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
8188140899
Weight
300 Gram
ऋतुसंहार’ संभवत: महाकवि कालिदास की काव्य-प्रतिभा का प्रथम प्रसाद है, जिससे पाठक वर्ग प्राय: वंचित ही रहा है| ‘ऋतुसंहार’ का शाब्दिक अर्थ है-ऋतुओं का संघात या समूह| इस काव्य में कवि ने छह ऋतुओं का छह सर्गों में सांगोपांग वर्णन किया है| कवि ने ऋतुचक्र का वर्णन ग्रीष्म से आरंभ कर प्रावृट् (वर्षा), शरत्, हेमंत व शिशिर ऋतुओं का क्रमश: दिग्दर्शन कराते हुए प्रकृति के सर्वव्यापी सौंदर्य, माधुर्य एवं वैभव से संपन्न वसंत ऋतु के साथ इस कृति का समापन किया है| प्रत्येक ऋतु के संदर्भ में कवि ने न केवल संबंधित कालखंड के प्राकृतिक वैशिष्ट्य, विविध दृश्यों व छवियों का चित्रण किया है, बल्कि हर ऋतु में प्रकृति-जगत् में होनेवाले परिवर्तनों व प्रक्रियाओं के युवक-युवतियों व प्रेमी-प्रेमिकाओं के प्रणय-जीवन पर पड़नेवाले प्रभावों का भी रोमानी शैली में निरूपण व आकलन किया है| प्रकृति के प्रांगण में विहार करनेवाले विभिन्न पशु-पक्षियों तथा नानाविध वृक्षों, लताओं व फूलों को भी कवि भूला नहीं है| वह भारत के प्राकृतिक वैभव तथा जीव-जंतुओं के वैविध्य के साथ-साथ उनके स्वभाव व प्रवृत्तियों से भी पूर्णत: परिचित है| प्रस्तुत काव्य को पढ़ने से भारत की विभिन्न ऋतुओं का सौंदर्य अपने संपूर्ण रूप में हमारी आँखों के समक्ष साक्षात् उपस्थित हो जाता है| आशा है, मुक्त शैली में रचित यह काव्यानुवाद सुधी पाठकों को पसंद आएगा|
0
out of 5