₹300.00
MRPGenre
Print Length
254 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2010
ISBN
8188266566
Weight
395 Gram
शिक्षा-प्रणाली में परिवर्तन की बात करना हमारे देश में एक फैशन-सा बन गया है; किंतु आश्चर्य है कि स्वाधीन भारत साठ वर्षों में ब्रिटिश शासकों द्वारा प्रवर्तित शिक्षा-प्रणाली में रंच मात्र भी मौलिक परिवर्तन नहीं कर पाया| अंग्रेजी शिक्षा-प्रणाली के विरुद्ध हमारी लड़ाई उसी दिन से प्रारंभ हो गई थी जिस दिन से इस प्रणाली का बीज भारत की धरती में बोने का प्रयास किया गया था| वस्तुत:, अंग्रेजी शिक्षा-प्रणाली से छुटकारा पाना और राष्ट्र्रीय शिक्षा-प्रणाली का आविष्कार करना हमारे स्वातंत्र्य आंदोलन की मूल प्रेरणाओं में से एक प्रमुख प्रेरणा रही है| इसलिए ब्रिटिश दासता के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई के साथ-साथ राष्ट्रीय शिक्षा की खोज की दिशा में भी अनेक प्रयोग प्रारंभ किए गए| डी.ए.वी. आंदोलन, गुरुकुल काँगड़ी आंदोलन, शांतिनिकेतन की स्थापना, बंग-भंग विरोधी आंदोलन के समय राष्ट्रीय विद्यालयों की शृंखला का जन्म, असहयोग आंदोलन के समय विद्यापीठों का उद्भव, बेसिक शिक्षा, अरविंद आश्रम का विद्यालय आदि-आदि अनेकानेक प्रयोग ऐसे मनीषियों के द्वारा आरंभ किए गए, जिनकी बौद्धिक एवं संगठनात्मक क्षमता आज के स्वयंभू नेताओं एवं विचारकों की तुलना में कई गुना अधिक थी| इनके आदर्शवाद की गहराई की तह तक पहुँच पाना हम पिग्मियों के लिए लगभग असंभव है| राष्ट्रीय शिक्षा के इन प्रयोगों का क्या हुआ? क्या वे सचमुच अंग्रेजी शिक्षा-प्रणाली का युगानुकूल विकल्प बन पाए? क्या वे कहीं भी राष्ट्रीय शिक्षा का नमूना खड़ा कर पाए हैं? प्रस्तुत है इस पुस्तक में इन प्रयोगों का आलोचनात्मक अध्ययन, ताकि उसके आलोक में स्वाधीन भारत युगानुकूल शिक्षा-प्रणाली विकसित कर सके|
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