कहानीकार का संवेदन संस्कार के रूप में अपने परिवेश को ग्रहण करता है | वह उसी में जीता है, साँस लेता है | प्रवासी लेखक अपने घर-परिवार, देश और मिट्टी से अलग होकर एक अन्य देश-काल और परिवेश में चला जाता है | वहाँ उसके नए संस्कार बनते हैं, नए दृष्टिकोण बनते हैं | माहौल बदल जाने से उसकी जिंदगी में बहुत सी पेचीदगियों आ जाती हैं | उसकी मान्यताएँ बदलने लग जाती हैं | यहीं द्वंद्व के आरंभ का प्रारंभ होता है | और यहीं कहानियाँ जन्म लेती हैं |.. ये कहानियों भारतीय मूल्यों और मान्यताओं के चौखटे में संभवतः सही नहीं बैठेंगी; परंतु इन मूल्यों और मान्यताओं कै कारण ही एक परिवेश का साहित्य दूसरे परिवेश के साहित्य से अलग नहीं हो जाता | इन कहानियों के भीतर रिसी हुई गहरी मानवीय संवेदना उन्हें एक - दूसरे से जोड़े रखती है | सात समंदर पार होने पर भी यही मानवीयता इन कहानियों को समयातीत, कालेतर और समयसापेक्ष बनाती है |
Pravas Mein (प्रवास में)
Price:
₹
300.00
Condition: New
Isbn: 9789387968721
Publisher: Prabhat Prakashan
Binding: Hardcover
Language: Hindi
Genre: Novels And Short Stories,
Publishing Date / Year: 2018
No of Pages: 312
Weight: 500 Gram
Total Price: ₹ 300.00
Reviews
There are no reviews yet.