₹200.00
MRPGenre
Other
Print Length
142 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2014
ISBN
9789350480595
Weight
260 Gram
देश में बहुत सी स्वैच्छिक संस्थाएँ भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठा रही हैं, लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह है| भ्रष्टाचार मिटाने के लिए एक प्रबल जनमत खड़ा करने की आवश्यकता है| किसी भी स्तर पर रत्ती भर भी भ्रष्टाचार सहन न करने की एक कठोर प्रवृत्ति की आवश्यकता है, तभी हमारे समाज से भ्रष्टाचार समाप्त हो सकता है| आज की सारी व्यवस्था राजनैतिक है| शिखर पर बैठे राजनेताओं के जीवन का अवमूल्यन हुआ है| धीरे-धीरे सबकुछ व्यवसाय और धंधा बनने लग पड़ा| दुर्भाग्य तो यह है कि धर्म भी धंधा बन रहा है| राजनीति का व्यवसायीकरण ही नहीं अपितु अपराधीकरण हो रहा है| राजनीति प्रधान व्यवस्था में अवमूल्यन और भ्रष्टाचार का यह प्रदूषण ऊपर से नीचे तक फैलता जा रहा है| सेवा और कल्याण की सभी योजनाएँ भ्रष्टाचार में ध्वस्त होती जा रही हैं| एक विचारक ने कहा है कि कोई भी देश बुरे लोगों की बुराई के कारण नष्ट नहीं होता, अपितु अच्छे लोगों की तटस्थता के कारण नष्ट होता है| आज भी भारत में बुरे लोग कम संख्या में हैं, पर वे सक्रिय हैं, शैतान हैं और संगठित हैं| अच्छे लोग संख्या में अधिक हैं, पर वे बिलकुल निष्क्रिय हैं, असंगठित हैं और चुपचाप तमाशा देखने वाले हैं| बहुत कम संख्या में ऐसे लोग हैं, जो बुराई के सामने सीना तानकर उसे समाप्त करने में कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं| देश इस गलती को फिर न दुहराए| गरीबी के कलंक को मिटाने के लिए सरकार, समाज, मंदिर सब जुट जाएँ| यही भगवान् की सच्ची पूजा है| नहीं तो मंदिरों की घंटियाँ बजती रहेंगी, आरती भी होती रहेगी, पर भ्रष्टाचार से देश और भी खोखला हो जाएगा तथा गरीबी से निकली आतंक व नक्सलवाद की लपटें देश को झुलसाती रहेंगी|
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