₹200.00
MRPGenre
Novels And Short Stories
Print Length
168 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2012
ISBN
9789350488775
Weight
325 Gram
दीनदयाल उपाध्याय प्रणीत एकात्म मानववाद के संदर्भ में एक चर्चा होती रहती है कि यह ‘वाद’ है या ‘दर्शन’? ‘वाद’ पाश्चात्य परंपरा का वाहक है, जबकि ‘दर्शन’ भारतीय परंपरा का| ‘एकात्म मानव’ का विचार तत्त्वतः भारतीय विचार है, अतः इसे ‘दर्शन’ कहना चाहिए, कुछ लोगों का यह आग्रह रहता है, जो गलत नहीं है| मा. नानाजी देशमुख ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ में ‘दर्शन’ शब्द का ही प्रयोग करते थे| यह बात ठीक होते हुए भी यह तथ्य है कि दीनदयाल उपाध्याय ने अपने बौद्धिक वर्गों में तथा ‘सिद्धांत एवं नीति’ प्रलेख में इसे ‘एकात्म मानववाद’ कहा है| मुंबई में जो उनके चार भाषण हुए, उनमें भी ‘एकात्म मानववाद’ शब्दपद का ही उपयोग है| पाश्चात्य चिंतन की पृष्ठभूमि में दीनदयालजी ने इस विचार का विवेचन किया है| व्यक्तिवाद व समाजवाद को उन्होंने पृष्ठभूमि में वर्णित किया है, अतः ‘एकात्म मानववाद’ भी एकदम संगत शब्द प्रयोग है| यथा रुचि ‘वाद या दर्शन’ दोनों का ही प्रयोग किया जा सकता है, यह कोई विवाद का मुद्दा नहीं है|
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