भारतीय आध्यात्मिक चेतना के सिरमौर स्वामी विवेकानंद अद्भुत मेधा के स्वामी थे| उन्होंने कहा था कि सारे अनर्थों की जड़ है हमारी गरीबी| स्वामीजी दरिद्रनारायण के दुखों से द्रवित और दलितवर्ग के प्रति किए जानेवाले अन्याय से व्यथित थे| वे जाति-पाँति के घोर विरोधी थे और इसे सामाजिक जीवन का घोर कलंक मानते थे| स्वामीजी का विश्वास था कि प्रत्येक राष्ट्र को अपनी नारी-जाति का सम्मान करना चाहिए| उनकी मान्यता थी कि भारत के सर्वसाधारण में यदि धर्म का संचार हो जाए, तो हम छोटी-छोटी समस्याओं से सहज में ही मुक्त हो जाएँगे| स्वामीजी धर्मपुरुष थे और भारतीय संस्कृति के सजग प्रहरी| वे कट्टर राष्ट्रवादी थे, किंतु उनका राष्ट्रवाद मानवता का पोषक था| स्वामीजी ने धर्म और संस्कृति का निदान करते हुए सोए हुए भारत को उसके गौरवशाली अतीत से परिचित कराया| वेदों और उपनिषदों के प्राचीन आत्मज्ञान के संदेश को पाश्चात्य देशों तक गुंजारित किया| वेदांत के अद्वितीय प्रचारक, भारतीय संस्कृति के विशिष्ट उद्घोषक, मानवता के महान् पोषक, दूरदर्शी विचारक स्वामी विवेकानंद के विचार देश की भावी युवा पीढ़ी के लिए पथ-प्रदर्शक का कार्य करेंगे| इसी भावना और शुभ संकल्प के साथ स्वामीजी के विचारों का यह संकलन प्रस्तुत है|
Main Vivekanand Bol Raha Hoon (मैं विवेकानंद बोल रहा हूं)
Author: Giriraj Sharan (गिरिराज शरण)
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₹
350.00
Condition: New
Isbn: 9789380823201
Publisher: Prabhat Prakashan
Binding: Hardcover
Language: Hindi
Genre: Novels And Short Stories,Memoir And Biography,
Publishing Date / Year: 2010
No of Pages: 168
Weight: 300 Gram
Total Price: ₹ 350.00
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