₹400.00
MRPGenre
Other
Print Length
272 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
9788173158988
Weight
480 Gram
चीन विकास के क्षेत्र में अपनी गति से अर्थशास्त्र के चकित करनेवाले नए मुहावरे गढ़ रहा है; जबकि भारत उभरती अर्थव्यवस्था का विशिष्ट उदाहरण है| भारत के विकास की गति में, धीमी किंतु निरंतर वृद्धि हुई है| भारत और चीन ने विकास और उन्नति के नए शिखर छुए हैं और दुनिया भर की निगाहें अपनी ओर खींच ली हैं| यक्ष प्रश्न है कि सुपर पावर की दौड़ में कौन विजयी होगा-भारतीय कछुआ या चीनी खरगोश? सुप्रसिद्ध उद्यमी और मीडियाधर्मी राघव बहल का तर्क है कि इसका निर्णय इस आधार पर नहीं होगा कि इस समय कौन अधिक निवेश कर रहा है या कौन तेज गति से उन्नति कर रहा है, बल्कि सुपर पावर बनने के पैमाने होंगे-किसमें अधिक उद्यमशीलता और दूरदर्शिता है और कौन प्रतिस्पर्धात्मक परिस्थितियों का सामना करते हुए विकासशील है| निर्णायक मुद्दा यह होगा कि क्या भारत अपने नीति-निर्धारण और सरकारी प्रशासन को सुधार पाएगा? एशिया की दो बड़ी शक्तियों-चीन और भारत-के इतिहास, राजनीति, अर्थव्यवस्था व संस्कृतियों के तथ्यपरक विश्लेषण और विवरण पर आधारित यह पुस्तक बहल के प्रतिभापूर्ण लेखन की परिचायक है| सुपर पावर? में विद्वान् लेखक ने आँकड़ों सहित इन दो पड़ोसी देशों की होड़ का पूरा लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है| ऐसे प्रत्येक पाठक के लिए, जो जिज्ञासु है कि ये दोनों देश इतिहास को कैसे बदलेंगे, पुस्तक अत्यंत पठनीय है| ‘इस पुस्तक में भू-राजनीति के उभरते दौर में भारत और चीन की भूमिका का अनूठा तथा आकर्षक विवरण है|’ -आनंद शर्मा, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, भारत सरकार ‘अनूठी शैली में अपूर्व अंतर्दृष्टि के साथ भारत और चीन के इतिहास एवं क्षमताओं का आँकड़ों से परिपूर्ण चित्रण|’ -एन.आर. नारायण मूर्ति, चेयरमैन, इंफोसिस ‘इक्कीसवीं सदी की उभरती शक्ति के रूप में भारत की समस्याओं और संभावनाओं में दिलचस्पी रखनेवाले हर व्यक्ति के लिए पठनीय|’ -विमल जालान, भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर ‘उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भारत को अंतत: ‘लोकतंत्र, जनसांख्यिकी और विविधता’ का लाभ मिलेगा|’ -मुकेश डी. अंबानी, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ‘इक्कीसवीं सदी में एशिया की दो बड़ी शक्तियों भारत और चीन के विकास का विशद और गहन अध्ययन|’ -नंदन नीलकेनी, चेयरमैन, यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया ‘आज दुनिया के दो सबसे चर्चित राष्ट्र भारत व चीन की वर्तमान और ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर आर्थिक स्थिति, राज्यतंत्र और समाज की तुलना एवं विवेचना|’ -सुनील भारती मित्तल, चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक, भारती एंटरप्राइजेज ‘दो दिग्गज राष्ट्रों की क्षमताओं और चुनौतियों की अंतर्दृष्टिपूर्ण तुलना| भारत बनाम चीन की पहेली को समझने के लिए एक पठनीय पुस्तक|’ -आनंद जी. महिंद्रा, उपाध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा ‘राघव पत्रकार और उद्यमी के रूप में इतिहास, अर्थशास्त्र और राजनीति की चर्चा में अपने परिप्रेक्ष्य को अनूठे अंदाज में रखते हैं|’ -के.वी. कामथ, चेयरमैन, आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड ‘जहाँ चीन के उत्थान के पीछे एक सबल शासन-तंत्र है, वहीं भारत धीरे-धीरे, सशक्त शासन-तंत्र के अभाव में, अस्त-व्यस्त तरीके से आगे बढ़ रहा है, परंतु भारत के विकास का रास्ता अधिक सुनिश्चित है|’ -गुरचरण दास, सुप्रसिद्ध लेखक व मैनेजमेंट गुरु ‘इतिहास, जनसांख्यिकी, अर्थव्यवस्था और समाज से संबंधित मुद्दों का भारत में रह रहे एक भारतीय द्वारा बहुआयामी विश्लेषण|’ -रमा बीजापुरकर, उपभोक्ता मामलों की विशेषज्ञ
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