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यह नारायणीयम्नामक छोटा-सा स्तोत्रात्मक काव्य केरल प्रान्त-निवासी विद्वान्भक्त श्रीभट्ट नारायण तिरि की रचना है। श्रीकृष्णलीलाके लगभग सभी प्रसंग इसमें वॢणत हैं। भक्ति रस का परिपोषक होनेके कारण यह काव्य रत्न श्रीमद्भागवतके समान आशीर्वादात्मक ग्रन्थ है। भक्त-समाजमें इसका अत्यन्त आदर है। केरलवासी भक्त लौकिक और पारलौकिक कामनाओंकी सिद्धिहेतु इसका नित्य पाठ करते हैं।
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