Krishnam Vande Jagadgurum (कृष्णम् वंदे जगद्गुरुम्)

By Dinkar Joshi (दिनकर जोशी)

Krishnam Vande Jagadgurum (कृष्णम् वंदे जगद्गुरुम्)

By Dinkar Joshi (दिनकर जोशी)

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Specifications

Print Length

191 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2014

ISBN

8185826609

Weight

360 Gram

Description

कृष्ण विचलित नहीं हुए | अपने खुद के वचन की यथार्थता मानो सहजभाव से प्रकट होती है | नाश तो सहज कर्म है | यादव तो अति समर्थ है; फिर कृष्ण- बलराम जैसे प्रचंड व्यक्‍त‌ियों से रक्षित हैं- उनका सहज नाश किस प्रकार हो? उनका नाश कोई बाह्य शक्‍त‌ि तो कर ही नहीं सकती | कृष्ण इस सत्य को समझते हैं और इसलिए माता गांधारी के शाप के समय केवल कृष्ण हँसते हैं | हँसकर कहते हैं - ' माता! आपका शाप आशीर्वाद मानकर स्वीकार करता हूँ; कारण, यादवों का सामर्थ्य उनका अपना नाश करे, यही योग्य है | उनको दूसरा कोई परास्त नहीं कर सकता | ' कृष्ण का यह दर्शन यादव परिवार के नाश की घटना के समय देखने योग्य है | अति सामर्थ्य विवेक का त्याग कर देता है और विवेकहीन मनुष्य को जो कालभाव सहज रीति से प्राप्‍त न हो, तो जो परिणाम आए वही तो खरी दुर्गति है | कृष्ण इस शाप को आशीर्वाद मानकर स्वीकार करते हैं | इसमें ही रहस्य समाया हुआ है |


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