$29.00
Print Length
306 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2012
ISBN
8173152306
Weight
485 Gram
रामकथा में दशरथ का चरित्र बड़ा ही अनूठा है| उन्हें साक्षात् विष्णु के अवतार श्रीराम का पिता होने का गौरव मिला है| प्रभु को सन्तान के रूप में पाकर दशरथ ने केवल आनन्द ही नहीं मनाया, उसका मूल्य भी चुकाया| यह मूल्य वसुदेव, देवकी और नन्द-यशोदा सबने चुकाया है| इनमें से कोई भी प्रभु को सन्तान बनाकर अपने पास नहीं रख पाया| दशरथ ने राम को बाँधा नहीं; यद्यपि बाँधने के सुदृढ़ कारण मौजूद थे| दशरथ बुढ़ापे तक पुत्र के लिए तरसते रहे; कोई साधारण-सा पुत्र भी उन्हें मिल जाता तो वे धन्य हो जाते| सौभाग्य से उन्हें गुरुकृपा से साक्षात् विष्णु के अवतार श्रीराम पुत्र के रूप में मिले| ऐसे पुत्र को वनवास देकर खोना आसान काम नहीं था| पर दशरथ ने राम को छल-कपट करके, पिता के प्रेम का वास्ता देकर नहीं रोका| उन्होंने बड़ी प्रार्थनाएँ कीं कि राम रुकें, पर स्वयं उन्होंने राम से कभी रुकने को नहीं कहा| सदाचरण करनेवाले दशरथ अपने पुत्र को सदाचरण के मार्ग पर चलने से कैसे रोकते! महाराज दशरथ ने अपने वचनों को पूरा करके अपने चरित्र को तो गरिमा दी ही, साथ-ही-साथ राम को भी गरिमायुक्त आचरण करने को प्रेरित किया| दशरथ ने क्षुद्रता दिखाई होती तो राम के लिए महान् बनना कठिन हो जाता| अयोध्या नरेश के सामने बड़ी विकट समस्या थी| उन्हें वचन भी निभाना था और प्रेम भी| दोनों एक-दूसरे के विरोधी थे| वचन निभाने का अर्थ था, राम के प्रति प्रेम को हृदय से निकाल फेंकना और प्रेम निभाने का अर्थ था, वचन के सत्य-संकल्प से चूक जाना| उन्होंने दोनों किए| कैकेयी को दिये गये वचन को भी निभाया और राम के वियोग में प्राण त्यागकर प्रेम को भी निभाया|
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