$35.00
Print Length
290 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2009
ISBN
8173150184
Weight
465 Gram
जग जननि जानकी मानस के दोहों-चौपाइयों का अर्थ बताते समय धर्म-दर्शन के गूढ़ तत्त्वों और जीवन के सहज किन्तु विस्मृत सत्यों को अपनी मृदु-मधुर शैली में हमारे हृदय की गहराइयों तक उतारते जाना अरुणजी की प्रमुख विशेषता है| सीता के पावन चरित्र को तुलसी ने बड़ी श्रद्धा और आस्था से सँवारा है| सीता के जीवन में दो कटु प्रसंग आते हैं-अग्नि-परीक्षा और निर्वासन| दोनों प्रसंगों को तुलसी ने अपनी कालजयी काव्य-प्रतिभा के बल पर निष्प्रभावी कर दिया है| उन्होंने लंकावासिनी सीता को छाया सीता बना दिया| लंका-विजय के बाद राम उन्हें पुन: पाने के लिए ‘कछुक दुर्वाद’ कहते हैं| छाया सीता अग्नि में प्रवेश करती हैं और उसमें से वास्तविक सीता निकलती हैं जो न लंका में गयी थीं, न कलंकित ही हुई थीं| सीता के निर्वासन के प्रसंग को तुलसी ने छुआ तक नहीं है| रामराज्य के वर्णन में उन्होंने लिखा- एक नारी ब्रत रत सब झारी| ते मन बच क्रम पति हितकारी|| ऐसे रामराज्य में धोबी का कलुषित प्रकरण कैसे स्थान पा सकता था! प्रस्तुत पुस्तक में सीता के त्यागमय और प्रेरणादायी चरित्र का लुभावना अंकन किया गया है|
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