₹395.00
MRPGenre
Print Length
256 pages
Language
Hindi
Publisher
Rajpal and sons
Publication date
1 January 2022
ISBN
9789393267054
Weight
336 Gram
अद्वैत वेदान्त के सबसे प्रमुख प्रतिपादक, आदि शंकराचार्य एक मनीषी वैदिक धर्मशास्त्री और दार्शनिक थे। उनके द्वारा प्रचारित अद्वैत वेदान्त के सिद्धान्तों पर आधुनिक हिन्दु विचार मुख्यता आधारित है। उपनिषदों, भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र पर उनके भाष्य, प्रकरण ग्रंथ और स्तोत्र अद्वैत वेदान्त परम्परा में अमूल्य योगदान हैं। इसी परम्परा को बनाये रखने के लिए उन्होंने देश में चार मठों, मंदिरों और शक्तिपीठों की स्थापना की। 786 ईसवीं में केरल में कालडी नामक स्थान पर इनका जन्म हुआ। छोटी उम्र में ही उन्होंने संन्यास ले लिया और अपने जीवन के पूरे 32 साल समाज व धर्म में नव जागरण और जन कल्याण के कार्यों में समर्पित कर दिया। आदि शंकराचार्य के जीवन पर आधारित कई जीवनियाँ उपलब्ध हैं, लेकिन अधिकांश उनकी मृत्यु के 300 वर्ष उपरान्त लिखी गईं और बहुत प्रमाणिक नहीं मानी जातीं। डॉ. दशरथ ओझा ने, दिल्ली विश्वविद्यालय में 1948 से 1977 तक हिन्दी पढ़ाते रहे, वर्षों तक शंकराचार्य के जीवन पर शोध किया और महात्माओं, इतिहासकार और लेखकों से प्रमाणिक जानकारी एकत्रित करने के बाद यह पुस्तक लिखी। हिन्दी और संस्कृत में पीएच.डी. की उपाधि पाने वाले डॉ. ओझा का कहना है, मानव कल्याण के लिए आचार्य शंकर ने किस प्रकार वैदिक, बौद्ध, जैन, शाक्य, कापालिक आदि अनेक मत-मतान्तरों का जिस प्रकार पुररुद्धार किया, उसकी झाँकी तत्कालीन इतिहास के परिप्रेक्ष्य में दिखाने का प्रयास है इस पुस्तक में।’’
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