Blaze - Ek Bete Ki Agnipariksha: Ek Vastvik Katha (ब्लेज़ - एक बेटे की अग्निपरीक्षा: एक वास्तु कथा)

By Nidhi Poddar (निधि पोद्दार)

Blaze - Ek Bete Ki Agnipariksha: Ek Vastvik Katha (ब्लेज़ - एक बेटे की अग्निपरीक्षा: एक वास्तु कथा)

By Nidhi Poddar (निधि पोद्दार)

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Specifications

Print Length

384 pages

Language

Hindi

Publisher

Rupa Publications Co.

Publication date

1 January 2022

ISBN

9789355206268

Description

क्या कोई बीमारी, वह भी कैन्सर, किसी व्यक्ति के जो इस बीमारी से जूझ रहा है, और उसके परिचारकों, विशेषकर उसके माता- पिता के आत्म-विकास को बढ़ा सकती है? स्वास्थ्य की महत्ता हमें अक्सर तभी समझ आती है जब हम उसे खो देते हैं। परंतु, इस खोए हुए ‘मित्र’ को वापस पाने की कठिन यात्रा भी हमें आत्मावलोकन, आत्म-परिवेक्षण और प्रतिदान के असंख्य अवसर प्रदान कर सकता है। समय के साथ हमें यह आभास हुआ कि कैन्सर से जूझ रहे किसी व्यक्ति के अथक प्रयासों को स्वस्थ हो जाने या पूरी तरह ठीक हो जाने की सामान्य परिभाषा में नहीं बाँधा जा सकता। आम तौर पर यह सोच हमारे अपने समाज से और दुर्भाग्यवश कई बार स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों से आती है, जब वे एक सीमा के आगे अपनी क्षमताओं में असमर्थ हो जाते हैं और आप को लगता है जैसे आप अवांछित हो गए हों और त्याग दिए गए हों। ऐसे अनेक नकारात्मक विचार और व्यवहार धीरे -धीरे मरीज़ और उसके अपनों के मन में घर कर जाते हैं, जहाँ एक बीमारी के कारण शारीरिक मृत्यु से पहले कई बार वे मानसिक तौर पर मृत्यु का अनुभव करते हैं। यह कैन्सर का सबसे बुरा स्वरूप है जिसने हमारी मानसिकता में अपनी जड़ें जमा ली है। पर, दिव्यांश आत्मन के मामले में ऐसा नहीं हुआ। प्रतिकूल परिस्थितियों में दिव्यांश धैर्य, साहस और दृढ़प्रतिज्ञता का प्रतिरूप था। उसकी जीवन-यात्रा हमें बताती है कि किस प्रकार जब आप संकट से चतुर्दिश घिरे हों और सारे रास्ते बंद होते दिख रहे हों, तब भी उम्मीद की लौ थाम कर आगे का रास्ता तलाशा जा सकता है। उसने एक विराट और सार्थक जीवन जिया, जिसने उसके संपर्क में आए अनेकों लोगों के जीवन को अर्थपूर्ण रूप से प्रभावित किया। ‘ब्लेज़’ दिव्यांश के इस प्रेरणादायी जीवन और उसके साथ -साथ उसकी माँ के मातृत्व के सतत विकास की कहानी प्रस्तुत करने का एक प्रयास है। उसकी एक कविता रीबर्थ की कुछ पंक्तियाँ इस प्रयास को प्रतिबिंबित करती हैं: समय के तुंग शिखर पर खड़े होकर जाना मैंने क्षणभंगुरता को जैसा वह है अपनी प्रकृति में सदैव ‘सही मायने में प्रेरणा देने वाली और दिल को छूने वाली कहानी…..’ सचिन तेंदुलकर, प्रसिद्ध पूर्व-क्रिकेटर ‘वे सारे माता- पिता जिन्होंने अपने बेटे या बेटी को खोया है, उनके लिए यह किताब उस अपार दुख के पार जीवन की आशा लेकर आएगी, वह भी उदासी नहीं विस्मय से भरी।‘ प्रितीश नंदी, कवि, पत्रकार और ख्यातिप्राप्त मीडियाकर्मी ‘इस किताब को समाप्त करते हुए जो भाव मेरे अंदर गूंज उठे, वे ये थे कि इंसानी हौसला कितना अद्भुत हो सकता है……’ फ़रहान अख़्तर, फिल्म अभिनेता ‘दिव्यांश की यात्रा ताक़त, साहस, और सतत अन्वेषण की यात्रा थी।‘ सुधा मूर्ति, ख्यातिप्राप्त लेखिका, और चेयरपर्सन, इनफ़ोसिस फाउंडेशन ‘दिल की अतल गहराई को छू लेने वाली दास्तान …….’ ख़ालिद मोहम्मद, पत्रकार और फिल्म-पटकथा-लेखक और निर्देशक


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