₹250.00
MRPPrint Length
96 pages
Language
Hindi
Publisher
Rajpal and sons
Publication date
1 January 2021
ISBN
9789389373592
Weight
316 Gram
‘पद्मश्री’, ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ और ‘भारत-भारती सम्मान’ से अलंकृत डॉ. उषाकिरण खान मैथिली और हिन्दी की विख्यात लेखिका हैं। पटना कॉलेज में प्राचीन भारतीय इतिहास और पुरातत्व विज्ञान की आप विभागाध्यक्ष रह चुकी हैं। आपकी अब तक पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें उपन्यास, कहानी, नाटक और बाल-साहित्य जैसी विविध विधाएँ सम्मिलित हैं। भामती, सृजनहार, हसीना मंज़िल, घर से घर तक उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। इतिहास की छात्रा और अध्यापिका रह चुकीं उषाकिरण खान की इतिहास के अलग-अलग काल-खंडों में स्त्रियों का क्या स्थान रहा है, गहरी रुचि है और यह कई पुस्तकों का विषय भी रहा है। मेरे मन में सदा उथल-पुथल रही कि स्त्री की स्थिति और उसके उत्थान-पतन की चर्चा की जाए तो कैसे? आम धारणा और क्रमिक विकास को ऐतिहासिक दृष्टि से देखते हुए मैंने लिखना शुरू किया...’’जिसका परिणाम है, मैं एक बलुआ प्रस्तर खंड ।’’ इसमें उन्होंने पूर्ववैदिक काल से लेकर बीसवीं सदी तक के समाज के अलग-अलग क्षेत्र की स्त्रियों के जीवन और उनकी उपलब्धियों की व्याख्या की है। यह पुस्तक ज्ञान का स्रोत होने के साथ स्त्रियों के लिए प्रेरणा स्रोत है।
0
out of 5